लेखनी कहानी -09-Jun-2023 गांव और शहर
गांव भी शहरों की तरह झूमने लगे हैं
लोग नशे में टुन्न होकर घूमने लगे हैं
जीवन मूल्यों की अपेक्षा पैसे को तरजीह देने लगे हैं
बेरुखी के बबूल के तले सुकून तलाश करने में लगे हैं
स्वार्थ का चारों ओर बोलबाला हो गया है
सबका जमीर न जाने कहां जाकर सो गया है
दावानल की तरह पीर बढती ही जा रही है
अपराधों की जंजीर गले पर कसती जा रही है
धूर्तता मक्कारी को "स्मार्टनेस" कहा जाने लगा है
विवाहेत्तर संबंध बनाने में खूब मजा आने लगा है
चेहरे पे मुखौटे लगाकर घूम रहे हैं लोग
विश्वास का कत्ल करके झूम रहे हैं लोग
लाज चुल्लू भर पानी में डूबकर मर गई है
बेशर्मी, बेहयाई की टोकरी अब पूरी भर गई है
शहर और गांव में कोई फर्क नजर नहीं आता है
भीड़ में भी इंसान खुद को अकेला ही पाता है
आगे निकलने की अंधी दौड़ में पिस रहे हैं लोग
बेवजह तनाव में जी कर रोगों को पाल रहे हैं लोग
न शुद्ध खानपान है और न शुद्ध आचरण
अपने कर्मों पर डाल रखा है सभी ने आवरण
ना भगवान पर श्रद्धा है और ना कानून का डर
दारू की दुकान के रूप में बने हुए हैं पाप के घर
फूहड़ता और नग्नता का नंगा नाच हो रहा है
अपने ही कंधों पर अपना ही बोझ ढो रहे हैं
नये जमाने का चलन बड़ा ही निराला है
झूठ, फरेब ने सच्चाई को घर से निकाला है
कोई कुछ भी सुनने को तैयार नहीं है
जो अभी भी इज्ज़तदार है, लाचार वही है
श्री हरि
9.6.23
Gunjan Kamal
20-Jun-2023 07:30 AM
👏👌
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ऋषभ दिव्येन्द्र
09-Jun-2023 08:21 PM
बहुत ही बेहतरीन रचना
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Hari Shanker Goyal "Hari"
09-Jun-2023 11:07 PM
🙏🙏
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Reena yadav
09-Jun-2023 07:41 PM
👍👍
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Hari Shanker Goyal "Hari"
09-Jun-2023 11:06 PM
🙏🙏
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